डॉक्टर है तो 30 लाख, इंजीनियर है तो 25 लाख , सरकारी नौकरी वाला है तो 20 लाख. विदेश से पढ़कर आया है, तो 50 लाख और यदि विदेश में नौकरी करता है तो शायद 1 करोड़… ये हम आपको किसी सामान की क़ीमत नहीं बता रहे. ये तो शादी के बाज़ार में सुशिक्षित दुल्हों के रेट्स हैं, जो बिचौलियों (जिन्हें उत्तर भारत में अगुवा कहा जाता है) की पहुंच, पहचान और सामने वाले से कितना घनिष्ठ संंबंध है इस पर निर्भर करता है. यदि आप ये आज सोच रहे हैं कि ये सब तो गुज़रे ज़माने की बात हो गई आज के पढ़े-लिखे युवा दहेज प्रथा के खिलाफ़ है, तो आप ग़लत हैं.
जहां तक मैंने अपने आसपास देखा है दहेज बदस्तूर जारी है. हां, मगर अब ये थोड़ा मॉर्डन हो गया है, मसलन अब स़िर्फ कैश की डिमांड नहीं की जाती, बल्कि लड़के (होने वाले दामाद) के नाम पर फ्लैट बुक करा दीजिए, वो फलां बिज़नेस शुरू करना चाहता है, तो इसकी फायनांशियली मदद कर दीजिए आदि.
हां, ये बात और है कि ये शिक्षित वर्ग अब पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह लड़की के पिता को दहेज के लिए समाज के सामने ज़लील नहीं करतें, इसलिए नहीं कि इनकी इज़्ज़त करते हैं, बल्कि इसलिए कि कहीं पुलिस केस न हो जाए. इस मामले में जो बात सबसे ज़्यादा हैरान करती है, वो है उच्च शिक्षित लड़कों की सोच. विदेश से पढ़कर आए ख़ुद को कूल और डूड समझने वाले लड़कों को भी दहेज मांगने में कोई बुराई नज़र नहीं आती.
हाल में मेरे एक दूर के रिश्तेदार की शादी थी. जनाब ने एमबीए किया है और किसी मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े पद पर हैं. एक दिन बातों-बातों में इनके मुंह से निकल गया अरे भई, मार्केट में मेरी बहुत डिमांड है कम से कम 40-50 लाख तो आराम से मिलेंगे. मुझे लगा शायद सैलरी की बात कर रहे हैं, मगर नहीं ये तो शादी के बाज़ार में अपनी क़ीमत आंक रहे थें. मेरे पूछने पर बिना किसी शर्म व झिझक के कहते हैं, इसमें बुराई क्या है, इतने सालों पढ़ाई की है, मां-बाप ने लाखों ख़र्च किए हैं मुझपर…
यह भी पढ़ेंः मां चाहिए, मगर बेटी नहीं
आज की पीढ़ी से ऐसी बातें सुनना क्या अजीब नहीं लगता? मुझे तो बहुत आश्चर्य होता है ऐसे तथाकथित मॉर्डन कहलाने वाले डूड की सोच पर.
ख़ुद जनाब ने एमबीए किया है तो ज़ाहिर है किसी अनपढ़ से तो शादी कर नहीं रहे होंगे, लड़की ने भी एमसीए किया है और अच्छी कंपनी में जॉब करती हैं, मगर मैरिज मार्केट में इसकी वैल्यू आज भी वही है, जो शायद 40-50 साल पहले थी.
एक और वाक़या मेरे पड़ोस का ही. लड़का नॉर्मल सा मैकेनिकल इंजीनियर है, उसके लिए एक हाईली क्वालीफाइड लड़की का रिश्ता आया, मगर लड़की थोड़ी मोटी थी और दिखने में बेहद साधारण, हालांकि पढ़ाई और कमाई के मामले में वो लड़के से कई गुणा बेहतर थी, मगर बावजूद इसके लड़के का कहना था कि लड़की वाले उसे एक फ्लैट देंगे तभी वो उनकी इस लड़की (उसकी नज़र में पढ़ाई और सैलरी कोई मायने नहीं रखती, लुक मायने रखता है.) से शादी के बारे में सोच सकता है, ये बात और है कि बाद में लड़की ने ही लड़के को रिजेक्ट कर दिया.
माफ़ कीजिएगा मगर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में आज भी दहेज प्रथा फल-फूल रही है. कुछ लोगों की सोच में बदलाव ज़रूर आया है, जिनमें से मिस्टर सिंह एक है. आर्मी से रिटायर्ड बिहार के रहने वाले मिस्टर सिंह ने अपने अफसर बेटे की हाल ही में शादी की और दहेज में एक रुपया नहीं लिया, मगर अफसोस कि ऐसे लोगों की तादाद अभी बहुत कम है.
तमाम तरह के क़ानून और जागरुकता अभियानों के बावजूद दहेज नामक दीमक का इस समाज से पूरी तरह ख़ात्मा नहीं हो पाया है. बुज़ुर्गों तक तो बात समझ आती है, मगर आज की यंग जनरेशन को क्या हो गया है? उनकी सोच कब बदलेगी? कुछ लड़के ऐसे भी हैं, जो दहेज को अच्छा नहीं मानते, लेकिन उनकी इतनी हिम्मत नहीं होती कि खुलकर माता-पिता को इसके लिए मना कर सकें, शायद पैसों का लालच उनका मुंह बंद कर देता है.
यह भी पढ़ेंः हर मां का सवाल- मेरा संडे कब आएगा?